मिथिला का इतिहास: प्राचीन काल से आधुनिक काल तक- History Of Mithila
नमस्कार दोस्तों इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से आपको मिथिला के बारे में जानकारी देने वाला हूं । दोस्तों मिथिला जो जगत जननी मां सीता की जन्म भूमि है, तथा विदेह राज राजा जनक की कर्म भूमि है , तो आज के पोस्ट में इसी मिथिला के इतिहास के बारे में बात करने वाले है।
मिथिला जो भारत के बिहार राज्य का उत्तरी भाग में नेपाल से सटा हुआ एक ऐतिहासिक क्षेत्र है, यहां का भाषा मैथिली है, जो एक इंडो-आर्यन समूह का भाषा है । मैथिली भाषा का प्रयोग भारत और नेपाल में लगभग 5 करोड़ लोगों द्वारा किया जाता है। तो सबसे पहले ये देखते है की मिथिला नाम कैसे पड़ा इस क्षेत्र का :
मिथिला का नामकरण
मिथिला का नाम राजा मिथी के नाम पर पड़ा है जो राजा जनक के ही पूर्वज थे , उन्होंने ही मिथिला को बसाया था जो वर्तमान में एक क्षेत्र मात्र रह गया है यह बिहार के अधिकांश उत्तरी भाग तथा नेपाल एवं झारखंड के कुछ हिस्सों से घिरा हुआ है |
मिथिला के इतिहास
मिथिला का इतिहास बहुत ही पुराना तथा समृद्ध है। इस क्षेत्र का वैदिक काल में महत्वपूर्ण स्थान रहा है तथा महाभारत और रामायण जैसे पौराणिक ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है । एस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से हम आपको मिथिला के वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक का जानकारी साझा करेंगे।
वैदिक काल का मिथिला
विदेह राज
सर्वप्रथम मिथिला का नाम विदेह राज था इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि कच्छ के रण से गुरु गौतम रोहुगन तथा उनका शिष्य माधव विदेह एक ऐसा जगह की खोज में निकले जो स्वर्ग से सुंदर हो तथा वहां का जमीन इतना उपजाऊ हो जहां अकाल का कोई संभावना न हो | इस खोज के दौरान वह बनारस के पास सदानीरा नदी ( सदानीरा नदी का नाम अभी गंडक है जिसका उद्गम स्थल नेपाल है) के तट पर पहुंचे , उस समय तक कोई इस नदी के पार नहीं गया था , इसी गंडक नदी को पार करके माधव विदेह मिथिला की धरती पर प्रवेश किया तब उन्हीं के नाम से इस राज्य का नाम विदेह राज्य पड़ा ।
तिरहुत राज
तिरहुत नाम पढ़ने के पीछे का कारण बताया जाता है कि उस समय में एक बात प्रचलित था की जो भी सदानीरा नदी के पार धरती श्रापित है तथा जो लोग उस पार जाते हैं वह विलुप्त हो जाते हैं । इसलिए लोग यहां आकर बसना नहीं चाहते थे। तब माधव विदेह ने इस जमीन को पवित्र का शुद्ध करने के लिए एक उपाय किया। उन्होंने तीन होतृ को बुलाया ( हमारे सनातन धर्म में चार वेद होते हैं और इस चारों वेद की ज्ञाता को ही होतृ कहा जाता है) । फिर उन तीनो ज्ञानी महापुरुषों ने मिथिला की धरती को शुद्ध करने के लिए यज्ञ और हवन किए जिससे यह जमीन बाकी धरती से पवित्र और पावन हो गया । क्योंकि इस जमीन को तीन होतृ के द्वारा शुद्ध किया गया था, इसलिए इसको तीरहोतृ भूमि कहा गया। तिरुहोतृ को ही बाद में तिरहुत कहा जाने लगा।
मिथिला
माधव विदेह का पुत्र राजा मिथी हुए उनको जनक का उपाधि मिला था | राजा मिथि के समय से ही जितने भी राजा मिथिला पर राज किया सबको राजा जनक का उपाधि मिला। राजा मिथि बहुत ही पराक्रमी एवं दयालु थे उनके समय में तिरहुत का विकास अपने चरम पर था । इसको याद रखने के लिए तिरहुत के प्रजा तथा ऋषि मुनियों ने इस राज्य का नाम अपने राजा के नाम पर रखने का निर्णय लिया इसके बाद ही तिरहुत को मिथिला राज्य के नाम से जाना जाने लगा ।
मध्यकालीन मिथिला
5वीं ई. पूर्व मैं अंतिम जनक राजा कीर्ति जनक उनके खराब चरित्र तथा राज-पाठ सही से ना चला पाने के कारण प्रजा द्वारा उन्हें निष्कासित कर दिया गया तथा यहां प्रजा ने राज चलाना शुरु कर दिया था। यह पहली था जब प्रजा के द्वारा राज किया गया था इस प्रकार यह उस समय का पहला प्रजातंत्र भी था ।
लेकिन इस समय के हिसाब से बिना राजा के राज्य को कमजोर माना जाता था। और इसलिए इस मौके का फायदा उठा कर बज्जी महासंघ ने मिथिला पर आक्रमण कर दिया और यहां राज करने लगा , लेकिन फिर कुछ समय बीतने के बाद मगध साम्राज्य ने यहां हमला कर के जीत कर लगभग 100 वर्षो तक शासन किया।
इसके बाद पाल राज वंश के द्वारा मिथिला पर हमला कर के जीत लिया गया और लगभग 500 वर्ष तक राज किया। 11वीं शताब्दी मैं मिथिला के पाल वंश के अंतिम शासन मुंडा पाल पर कर्नाट वन द्वारा विजय प्राप्त करके 14वीं शताब्दी तक राज किया। इस प्रकार मध्य काल में मिथिला क्षेत्र बहुत ही आक्रमण हुए जिस से इस क्षेत्र को आर्थिक और सामाजिक रूप से काफी नुकसान पहुंचा।
आधुनिक कालीन मिथिला
अलाउद्दीन खिलजी की नेतृत्व में 14वीं शताब्दी के अंत में मिथिला पर हमला कर के जीत लिया गया, लेकिन यहां विद्रोह के डर से अकबर ने यहां महेश ठाकुर को राजा बनाया जिन्होंने खंडवाल वंश का स्थापना किया था। उनके समय में ही मिथिला की राजधानी को वैशाली से बदल कर मधुबनी के राजनगर कर दिया गया था। 16वीं शताब्दी के आते-आते मुगल शासन कमजोर होने लग गया था तथा भारत में ब्रिटिश शासन का आगमन हो चुका था इस समय तक खंडवाल वंश भी ब्रिटिश शासन के अधीन आ चुका था।
16वीं शताब्दी में ही खंडवाल वंश के राजाओं ने ही मिथिला की राजधानी को राजनगर से स्थानांतरित कर के दरभंगा ले आए तथा यहीं से राज करने लगे। लक्ष्मेश्वर सिंह , रामेश्वर सिंह आदि खंडवाल वंश से ही थे। और कामेश्वर सिंह नहीं दरभंगा में स्थित प्रसिद्ध श्यामा माई मंदिर प्रांगण का निर्माण करवाया था।
महाराज कामेश्वर सिंह |
मिथिला के अंतिम राजा कामेश्वर सिंह ने ही 19वीं शताब्दी में यूनियन ऑफ़ इंडिया मैं इस राज्य को विलय होने दिया इसके बाद मिथिला का क्षेत्र नेपाल बिहार फिर 2000 ईस्वी में झारखंड मैं बंट गया ।
मिथिला ऐतिहासिक काल से बहुत सम्मिलितऔर संपन्न रहा है यहां कई शक्तिशाली राज्य थे जिसमें विदेह, जनकपुर, मधुबनी और दरभंगा शामिल थे। आज का मिथिला एकदम छोटे से क्षेत्र में सिकुड़ कर रह गया है ।
आज मिथिला कहां है?
वर्तमान में मिथिला भारत और नेपाल में स्थित है। पूर्व में कोसी नदीतथा पश्चिम में गंडक नदीइसका सीमा निर्धारण करता है और इसके बीच के क्षेत्र को ही मिथिला कहते हैं इसमें बिहार के दरभंगा, मुंगेर, पूर्णिया, कोसी, तिरहुत तथा भागलपुर प्रमंडल शामिल है इसके साथ झारखंड के कुछ हिस्से और नेपाल के तराई भाग के कुछ हिस्से मिथिला क्षेत्र शामिल है।
मिथिला की राजधानी क्या थी?
अलग अलग समय में मिथिला की राजधानी अलग अलग जगह पर थी, सबसे पहले मिथिला की राजधानी वैशाली उसके बाद राजनगर मधुबनी तथा अंतिम राजधानी दरभंगा थी।
मिथिला की पहचान क्या है?
मिथिला जो जगत जननी मां सीता की जन्म भूमि है, तथा विदेह राज राजा जनक की कर्म भूमि है तथा अपने विशेष सांस्कृतिक पहचान से जानी जाती ह, इसके अलावा मछली, पान, मखाना, को भी लोग मिथिला की पहचान से जोड़कर देखते हैं ।
मिथिला में कौन सी भाषा बोली जाती है?
मिथिला में मैथिली भाषा का प्रयोग किया जाता है। मैथिली बिहार राज्य की दूसरी आधिकारिक भाषा भी है तथा नेपाल में भी एक आधिकारिक भाषा के रूप में मैथिली भाषा को मान्यता प्राप्त है।
मिथिला में कौन सी नदी बहती है?
वैसे तो बहुत सारी नदियां मिथिला क्षेत्र में बहती है उसमे से कुछ ये प्रमुख नदी है : कोसी, कमला, बलान, बागमती, गंगा, गंडक, बूढ़ी गंडक, हरिद्रा, तिलयुगा, धेमुरा व गेहुमा ।
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