छठ पूजा कितने तारीख को है || chhath puja kab hai 2023
कार्तिक महीना के अमावस्या के रात दीपावली मनाने के ठीक बाद उसके छठवें दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष के कठिन और महत्वपूर्ण रात को छठ पूजा होता है इसी वजह से इस पूजा का नाम भी छठी व्रत होता हैं | एक मान्यता के अनुसार इस पर्व का नाम छठी महापर्व इसलिए पड़ा क्योंकि इस पूजा में भगवान सूर्यदेव और साथ में छठी मैया की पूजा की जाती है।
छठ पूजा क्यों मनाया जाता है
इस महापर्व को पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए पवनैतीन के द्वारा किया जाता है। छठी व्रतके संबंध में बहुत सारे कथाएं प्रचलित है, इसमें से एक कथा के अनुसार जब पांडवअपना सारा राजपाट जुआमें हार गए तब पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने यह व्रत किया था थ तब पांडवों को अपना खोया हुआ राजपाट वापस मिला था।
यह त्योहार खास तौर पर मिथिलांचल और पूरे बिहार भर में के साथ-साथ आसपास के प्रदेश जैसे झारखंड, उत्तरप्रदेश और दिल्ली के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष में धूम-धाम से मनाया जाता है । भारत के अलावा यह नेपाल,मॉरीशस एवं मालदीप आदि देश में भी छठ पूजा बहुत धूमधाम मनाया जाता है | वैसे तो बिहार के लोग जहां भी जाते हैं वहां इस महत्वपूर्ण पर्व को मानते हैं जैसे अमेरिका, इंग्लैंड और बहुत सारे यूरोपियन देश से हाल के दिनों में इस प्रकार की तस्वीर और वीडियो आए हैं जिस में लोग वहां छठ पूजा करते दिख रहे हैं ।
छठ पूजा भाई दूज के तीसरे दिन से आरंभ होता है और यह पूरा चार दिन का होता है
पहला दिन (नहाय-खाय) : इस दिन श्रद्धालु स्नान करने के बाद भोजन ग्रहण करते हैं, भोजन शुद्ध शाकाहारी होता है जिसमें प्याज लहसुन खाना वर्जित होता है, इस दिनसेंधा नमक, और अरवा चावल एवं लौकी जिसे मिथिला में सजमैन के नाम से जाना जाता है के बने सब्जी सब प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
दूसरा दिन (खरना): दूसरे दिन श्रद्धालु पूरे दिन भर उपवास व्रत किए रहते हैं और रात में गुड और चावल से बनी खीर बनाकर अपने इष्ट देव को चढ़ाने के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं , दूसरा दिन बहुत ही कठिन होता है क्योंकि पूरे दिन उपवास करना रहता है पड़ता है ।
तीसरा दिन (संध्या अर्घ्य): तीसरे दिन श्रद्धालु नदी या तालाब में सूर्यास्त के समय जाकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं जिसको आम भाषा में संध्या अर्घ्य कहते हैं ( अर्घ्य देना को ही मिथिला में हाथ उठाना भी कहते हैं )। इस दिन दिन श्रद्धालु सजे हुए डलिया लेकर जाते हैं, जिस में फल-फूल, धूप-दीप-अगरबत्ती, मिठाई, ठेकुआ, नारियल, मिट्टी का दिया, चावल, सिंदूर, होली-मौली, पीरकिया, खोजरी, एवं ईख इत्यादि ले जाते हैं ।
चौथा दिन (सूर्योदय अर्घ्य) : चौथे दिन सुबह-सुबह श्रद्धालु फिर से सजे हुए डलिया को लेकर नदी या तालाब के घाट पर जाते हैं और चौथे दिन उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देते हैं, फिर छठी पूजा का कथा सुनते हैं इसके बाद प्रसाद वितरण करते हैं सब लोग अपने घर आ जाते हैं , इस तरह यह 36 घंटे का कठिन व्रत का समापन होता है।
छठ पूजा के बारे में कुछ रोचक तथ्य:
- छठ पूजा के सभी सामान प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले होते हैं इस पूजा में किसी तरह के प्लास्टिक का उपयोग नहीं किया जाता है ।
- यह एक ऐसा त्यौहार है जो हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है जिससे हम अपने पर्यावरण को साफ और स्वच्छ बना सके क्योंकि इस महापर्व का शुरुआत है साफ सफाई से होता है।
- यह त्योहार सामूहिक एकता और सद्भावको बढ़ावा देता है क्योंकि इसमें सभी लोग जाति धर्म के बंधन से ऊपर उठकर सभी वर्ग के लोग सामूहिक रूप से भाग लेते हैं ।
- इस पूजा में श्रद्धालुओं को चार दिनों का सख्त उपवास करना होता है ।
- छठ पूजा में किसी तरह के नॉनवेज एवं शराब का उपयोग नहीं किया जाता है।
- यह पूजा हमें प्रकृति का सम्मान करना सिखाते हैं क्योंकि सूर्यदेव स्वयं प्रकृति के स्वरूप है।
- छठ पूजा साल में दो बार मनाया जाता है प्रथम बार चैती मास जो मार्च या अप्रैल में होता है एवं दूसरा बार यह कार्तिक महीने में मनाया जाता है जो आमतौर परअक्टूबर या नवंबर माह में होता है ।
कार्तिक छठ पूजा कब है - 2023
दिन- शुक्रवार, 17-नवंबर-2023, से
दिन- सोमवार, 20-नवंबर-2023 तक
पहला दिन |
नहाय-खाय |
शुक्रवार |
17 नवंबर 2023 |
दूसरा दिन |
खरना |
शनिवार |
18 नवंबर 2023 |
तीसरा दिन |
संध्या अर्घ्य |
रविवार |
19 नवंबर 2023 |
चौथा
दिन |
सूर्योदय
अर्घ्य |
सोमवार |
20 नवंबर 2023 |
चैती छठ पूजा 2024 || chaiti chhath puja 2024 date in bihar
पहला दिन |
नहाय-खाय |
शनिवार |
25 मार्च 2024 |
दूसरा दिन |
खरना |
रविवार |
26 मार्च 2024 |
तीसरा दिन |
संध्या अर्घ्य |
सोमवार |
27 मार्च 2024 |
चौथा दिन |
सूर्योदय अर्घ्य |
मंगलवार |
28 मार्च 2024 |
छठ पूजा कथा || Chhath Puja Katha
एक समय की बात है, एक राजा प्रियवद और उनकी पत्नी मालिनी था था। राजा को कोई संतान नहीं था , इसलिए उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर को राजा की पत्नी मालिनी ने खाया तथा इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ, लेकिन वह बच्चा मृत पैदा हुआ।
राजा प्रियवद पुत्र वियोग में बहुत दुखी हुए उन्होंने पुत्र को लेकर श्मशान ले गए और अपने प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं, उन्होंने राजा को बताया कि वह सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण वो षष्ठी कहलाती हैं। उन्होंने राजा से कहा कि तुम मेरा पूजन करो और और लोगों को भी इस पूजा के लिए प्रेरित करो। राजा प्रियवद ने विधि-विधान से देवी षष्ठी का व्रत एवं पूजा किया। देवी षष्ठी की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। मूलतः सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है।
छठ पूजा के दिन अगर कोई व्यक्ति व्रत को करता है तो वह अत्यंत शुभ और मंगलकारी होता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही निःसंतानों को संतान प्राप्ति होती है।
छठ पूजा के दौरान कौन-कौन से देवताओं की पूजा की जाती है?
छठ पूजा के दौरान सूर्य देव और छठी मइया की पूजा की जाती है। सूर्य देव को जीवन का दाता माना जाता है, जबकि छठी मइया को शक्ति और प्रकृति की देवी माना जाता है।
छठ पूजा के व्रत के नियम क्या हैं?
छठ पूजा के व्रत के नियम बहुत ही कड़े हैं। व्रत करने वाले भक्तों को 36 घंटे तक निर्जला उपवास करना होता है। व्रत के दौरान भक्त केवल साफ और शुद्ध पानी पी सकते हैं। व्रत के दौरान भक्तों को मांस-मदिरा, धूम्रपान, और शारीरिक संबंध आदि से भी दूर रहना होता है।
छठ पूजा में किन चीजों का प्रसाद चढ़ाया जाता है?
छठ पूजा में सूर्य देव को दूध, घी, चावल, गन्ना, फल, फूल, आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। छठी मइया को ठेकुआ, खरना में बनी खीर, फल, फूल, आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
कार्तिक छठ पूजा कितने तारीख को है ?
17-नवंबर-2023, दिन- शुक्रवार से , 20-नवंबर-2023 सोमवार तक
चैती छठ पूजा 2024 कब है ?
चैती छठ पूजा 25 मार्च 2024 से 28 मार्च 2024 तक मनाया जाएगा।
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